भगवान महावीर की जीवनी ||Biography of Mahavir In Hindi|| Bhagwan Mahavir ki jivani Hindi Me||
महावीर स्वामी जी जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर है। जैन साहित्य के अनुसार जैन धर्म आर्यों के वैदिक धर्म से भी पुराना है। जैन धर्म के विद्वान महात्माओं को ‘तीर्थकर’ कहा जाता था। ऐसा माना जाता है कि महावीर स्वामी से पहले 23 जैन तीर्थकर कर हुए थे। पहले तीर्थकर ऋषभदेव और 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। जिस युग में हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव का बोलबाला था उसी युग में भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा जैसे खास उपदेशों के माध्यम से सही राह दिखाने की कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से मनुष्यों का सही मार्गदर्शन किया।30 वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव का त्याग किया और सन्यास धारण आत्मकल्याण के पद पर निकल गए।
प्रारंभिक जीवन : -
जन्म -
महावीर स्वामी का जन्म 599 ई.पू .वैशाली(बिहार) के निकट कुण्डग्राम में क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम वर्धमान था। लेकिन जैन साहित्य में उन्हें ‘महावीर’ और ‘जिन’ नाम से भी पुकारा गया है। पिता का नाम सिद्धार्थ, जो कुण्डग्राम के राजा थे एवं माता का नाम त्रिशला , जिनका संबन्ध भी राजघराने से था। राजपरिवार में जन्म होने के कारण महावीर स्वामी का प्रारम्भिक जीवन सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण बीता।
पिता की मृत्यु के पश्चात 30 वर्ष की आयु में इन्होने सन्यास ग्रहण कर लिया और कठोर तप में लीन हो गये। ऋजुपालिका नदि के तट पर सालवृक्ष के नीचे उन्हे ‘कैवल्य’ ज्ञान (सर्वोच्च ज्ञान) की प्राप्ति हुई जिसके कारण उन्हे ‘केवलिन’ पुकारा गया। इन्द्रियों को वश में करने के कारण ‘जिन’ कहलाये एवं पराक्रम के कारण ‘महावीर’ के नाम से विख्यात हुए। जैन ग्रंथों के अनुसार 23 नेतृत्व कर पार्श्वनाथ के मोक्ष प्राप्त करने के 188 वर्षों के बाद इनका जन्म हुआ था।
विवाह -
दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रूचि नहीं थी। परन्तु इनके माता-पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था।श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ।
जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्तमान वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे 5 नामों का उल्लेख है। महावीर स्वामी द्वारा बताया गया पंचशील सिद्धांत एव शिक्षाय -
1. सत्य – महावीर जी कहते हैं कि सत्य सबसे बलवान है और हर इंसान को किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। सदा सत्य बोलो।
2. अहिंसा – दूसरों के प्रति हिंसा की भावना नहीं रखनी चाहिए। जितना प्रेम हम खुद से करते हैं उतना ही प्रेम दूसरों से भी करें। अहिंसा का पालन करें
3. अस्तेय – महावीर स्वामी कहते हैं कि दूसरों की चीज़ों को चुराना और दूसरों की चीज़ों की इच्छा करना महापाप है। जो मिला है उसमें संतुष्ट रहें।
4. बृह्मचर्य – महावीर जी कहते हैं कि बृह्मचर्य सबसे कठोर तपस्या है और जो पुरुष इसका पालन करते हैं वो मोक्ष की प्राप्ति करते हैं
5. अपरिग्रह – ये दुनियां नश्वर है। चीज़ों के प्रति मोह ही आपके दुखों का कारण है। सच्चे इंसान किसी भी सांसारिक चीज़ का मोह नहीं करते.
वैराग्य ( गृह त्याग): -
महावीर स्वामी के माता पिता की मृत्यु के पश्चात उनके मन मे वैराग्य लेने की इच्छा जागृत हुई, परंतु जब उन्होने इसके लिए अपने बड़े भाई से आज्ञा मांगी तो उन्होने अपने भाई से कुछ समय रुकने का आग्रह किया| तब महावीर स्वामी जी ने अपने भाई की आज्ञा का मान रखते हुये 2 वर्ष पश्चात 30 वर्ष की आयु मे वैराग्य लिया. इतनी कम आयु में घर का त्याग कर ‘केशलोच’ के साथ जंगल में रहने लगे.
इस अवधि में उन्हें अनेक कष्ट उठाने पड़े। स्वामी महावीर ने दिगंबर साधु की कठिन अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। श्वेतांबर संप्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते हैं। उनके अनुसार महावीर दीक्षा के उपरांत कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति भी दिगंबर अवस्था में ही की। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। जब वे ध्यान मग्न रहकर इधर-उधर घूमते थे तो लोग उन्हें डंडों से पीटते थे, परंतु फिर भी वे पूर्ण रूप से मौन और शांत रहते थे। उन्होंने अपने शरीर के जख्मों को ठीक करने के लिए औषधि तक का भी प्रयोग नहीं किया था।
ज्ञान की प्राप्ति -
इस प्रकार वर्धमान अपार धीरज के साथ अपनी तपस्या में 12 वर्ष 5 माह और 15 दिन तक लीन रहे और 13 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के नीचे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ. इसके बाद उन्हें ‘केवलिन’ नाम से जाना गया तथा उनके उपदेश चारों और फैलने लगे. बडे-बडे राजा महावीर स्वामी के अनुयायी बने उनमें से बिम्बिसार भी एक थे. 30 वर्ष तक महावीर स्वामी ने त्याग, प्रेम और अहिंसा का संदेश फैलाया और इंद्रियों पर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली और वे ‘जिन’ तथा ‘महावीर’ के नाम से पुकारे जाने लगे और वे बंधन हीन हो गए। बाद में वे जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर बनें और विश्व के श्रेष्ठ महात्माओं में शुमार हुए.
30 वर्ष तक अपने उपदेशों का प्रचार करने के पश्चात 527 ईसा पूर्व में महात्मा महावीर स्वामी का आधुनिक पटना के निकट पावा नामक स्थान पर देहांत हो गया। इस समय उनकी आयु 72 वर्ष थी। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका धर्म फलता फूलता रहा और आज भी विद्यमान है। जैन समाज के अनुसार महावीर स्वामी के जन्म दिवस को महावीर जयंती तथा उन के मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।
साहित्य काव्यात्मक -
1. आचार्य समन्तभद्र विरचित “स्वयंभूस्तोत्र” चौबीस तीर्थंकर भगवानों की स्तुति है। इसके आठ श्लोक भगवान महावीर को समर्पित है
2. आचार्य समन्तभद्र विरचित युक्तानुशासन एक काव्य रचना है जिसके 64 श्लोकों में तीर्थंकर महावीर की स्तुति की गयी है.
3. वर्धमान स्तोत्र- 64 श्लोक में महावीर स्वामी की स्तुती की गयी है। इसकी रचना मुनि प्रणम्यसागर ने की।
4. महाकवि पदम कृत महावीर रास - इसका रचना काल वि•स• की 18वीं सदी का मध्यकाल है। इसका प्रथम बार हिंदी अनुवाद और संपादन डॉ. विद्यावती जैन जी द्वारा किया गया था। यह 1994 में प्राच्य श्रमण भारती द्वारा प्रकाशित किया गया था।
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